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एक वगत तो गामडे आवों...(एक बार तो गाँव आओं) वागडी कविता

आणा ज़माना मय बाज़ार नी तरफ दौड़ता लोग माते खार करती वागडी कविता....


एक वगत गामडे तो आवों,
पईसा नी आंदरी दौड़ मय गामडू हुनु पड़यु है,
डाकि-डाकि ने जे बावसी बेवाडया थानक मय,
ई थानक हुन पडय है,
भोपा ई भी दानगी माते राकया हीं,
लोगे गामडा नु घोर वेसवा नी रट लगावी हीं,
नकी नाहो आपडे रिवाज़ थकी,
गामडा मय मेहला ना मालिक,
बाज़ार नी हाकडाई में पड़या हीं,
अने कई रया हीं के,
अमे तरक्की नी वाट में उबा हं,
जाण हं के गामडा मय आकु वर नी रो,
पण सुट्टी ना दाडा तो गामडा में पूरा करो,
ताप असल नी लागे तो टाड में आव्या करो,
टाड असल नी लागे तो होरी (होली) ऊपर आवों,
होरी असल नी लागे तो दिवारी माते आवों,
दिवारी माते नी आवों तो कादिरा मय आवों,
भले सब सुट्टी बाज़ार में मनावो,
पण एक वगत तो गामड़े आवों,
गामड़े आवों मारा भाई, गामड़े आवों!
साभार
मनोहर सिंह रेलडा
जिला कोषाध्यक्ष 
वागड़ क्षत्रिय महासभा
जिला डूंगरपुर
मनोहर सिंह रेलडा


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